ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
ज़ब्त-ए-गिर्या
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
मुबहम पयाम
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा