मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
ज़ब्त-ए-गिर्या
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला