अफ़्सोस शराब पी रहा हूँ तन्हा
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
जाने वाले क़मर को रोके कोई
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर