मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार