आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
जाने वाले क़मर को रोके कोई
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत