ज़िंदगी इस तरह भटकती है
और कुछ दैर अभी ठहर जाओ
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
दिल पे लगते हैं सैकड़ों नश्तर
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को