आदम को ये तोहफ़ा ये हदिया न मिला
सोज़-ए-ग़म-ए-दूरी ने जला रक्खा है
ऐ ख़ालिक़-ए-ज़ुल-फ़ज़्ल-ओ-करम रहमत कर
ज़ाहिर वही उल्फ़त के असर हैं अब तक
बे-गोर-ओ-कफ़न बाप का लाशा देखा
इतना न ग़ुरूर कर कि मरना है तुझे
अब वक़्त-ए-सुरूर- ओ फ़रहत-अंदोज़ी है
ठोकर भी न मारेंगे अगर ख़ुद-सर है
गुलशन में सबा को जुस्तुजू तेरी है
अफ़्ज़ूँ हैं बयाँ से मोजिज़ात-ए-हैदर
ला-रैब बहिश्तियों का मरजा है ये
अश्कों में नहाओ तो जिगर ठंडे हों