तड़प है क़ैस के दिल में तह-ए-ज़मीं इस से
हाल-ए-बद में मिरे ब-तंग आ कर
वाए इस जीने पर ऐ मस्ती कि दौर-ए-चर्ख़ में
हर-चंद गदा हूँ मैं तिरे इश्क़ में लेकिन
न समझा गया अब्र क्या देख कर
न आया वो तो क्या हम नीम-जाँ भी
दुनिया से दर-गुज़र कि गुज़रगह अजब है ये
ताब-ओ-ताक़त को तो रुख़्सत हुए मुद्दत गुज़री
तस्कीन-ए-दिल के वास्ते हर कम-बग़ल के पास
'मीर' को ज़ोफ़ में मैं देख कहा कुछ कहिए
मैं बे-नवा उड़ा था बोसे को उन लबों के
बुताँ के इश्क़ ने बे-इख़्तियार कर डाला