हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्याद
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार
विदाअ ओ वस्ल में हैं लज़्ज़तें जुदागाना
फिर इस अंदाज़ से बहार आई
जराहत तोहफ़ा अल्मास अर्मुग़ाँ दाग़-ए-जिगर हदिया
दिल ही तो है सियासत-ए-दरबाँ से डर गया
कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं
तू ने क़सम मय-कशी की खाई है 'ग़ालिब'
लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले
क्यूँ गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा न जाए दिल
ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है
रौंदी हुई है कौकबा-ए-शहरयार की