जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या
हज़रत-ए-नासेह गर आवें दीदा ओ दिल फ़र्श-ए-राह
दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'
शोरीदगी के हाथ से है सर वबाल-ए-दोश
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
कौन है जो नहीं है हाजत-मंद
बीम-ए-रक़ीब से नहीं करते विदा-ए-होश
मैं ने माना कि कुछ नहीं 'ग़ालिब'
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए
बंदगी में भी वो आज़ादा ओ ख़ुद-बीं हैं कि हम