मैं कर के चला बातें और उस शोख़ ने वोहीं
पूछा जो किसी ने तो कहा रह-गुज़री था
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जान जानी है मिरी ऐ बुत-ए-कम-सिन तुझ पर
ख़ाना-ए-दिल पे बिना अर्श की तू रख तो सही
फ़लक की ख़बर कब है ना-शाइरों को
नाज़ुक है दिल-ए-यार बहुत चाहिए मुझ को
तू गोश-ए-दिल से सुने उस को गर बत-ए-बे-मेहर
उस शाहिद-ए-निहाँ का कुश्ता हूँ मैं कि जिस ने
आँखें न चुरा 'मुसहफ़ी'-ए-रेख़्ता-गो से
'मीर' क्या चीज़ है 'सौदा' क्या है
बस बहुत ज़ब्त-ए-ग़म-ए-इश्क़ किया
तौबा तो की है इश्क़ से पर इस का क्या इलाज
आई जो रूह-ए-लैला ज़ियारत को क़ैस की
मर जाऊँगा मैं या वही जावेगा मुझे मार