फूल खुलते ही तितली भी आई
क्या कोई दोस्ती पुरानी है
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(383) Peoples Rate This
लुट गया दिल कहाँ नहीं मालूम
क्यूँ ये कहते हो क्या नहीं मालूम
पत्थरों पे नाम लिखता हूँ तिरा
मतलब का ज़माना है 'नादिर' कोई क्या देगा
ज़िंदगी अपनी कामयाब नहीं
लगता नहीं कहीं भी मिरा दिल तिरे बग़ैर
बा'द मरने के भी अरमान यही है ऐ दोस्त
इंसान के दिल को ही कोई साज़ नहीं है
कोई उस ज़ालिम को समझाता नहीं
माँगना काम मुझ सवाली का
कौन कहता है ग़म मुसीबत है
हम दिल फ़िदा करें कि तसद्दुक़-ए-जिगर करें