नींद आती है अगर जलती हुई आँखों में
कोई दीवाने की ज़ंजीर हिला देता है
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ख़ुद पर भी खोलिए न कभी दिल की वारदात
ये समझ के माना है सच तुम्हारी बातों को
हौसला है तो सफ़ीनों के अलम लहराओ
इबलीस भी रख लेते हैं जब नाम फ़रिश्ते
ये अलग बात ज़बाँ साथ न दे पाएगी
अगरचे कार-ए-दुनिया कुछ नहीं है
मैं जो रोता हूँ तो कहते हो कि ऐसा न करो
चराग़ ख़ुद ही बुझाया बुझा के छोड़ दिया
शुमार मैं न करूँगा फ़िराक़ के शब ओ रोज़
वीरान तो नहीं शब-ए-तारीक की फ़ज़ा
इस भरे शहर में आराम मैं कैसे पाऊँ
ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े