सूफ़ी तबस्सुम कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सूफ़ी तबस्सुम (page 3)
नाम | सूफ़ी तबस्सुम |
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अंग्रेज़ी नाम | Sufi Tabassum |
जन्म की तारीख | 1899 |
मौत की तिथि | 1978 |
ऐसा न हो ये दर्द बने दर्द-ए-ला-दवा
आज 'तबस्सुम' सब के लब पर
तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो
तंहाई
नज़्म
मैं आ रहा हूँ
ख़ुद-कुशी
चंद रोज़ और मिरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
बंद हो जाए मिरी आँख अगर
अजनबी ख़त-ओ-ख़ाल
ज़िंदगी क्या है इक सफ़र के सिवा
ज़बाँ करती है दिल की तर्जुमानी देखते जाओ
ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब
ये आज आए हैं किस अजनबी से देस में हम
वो वुसअतें थीं दिल में जो चाहा बना लिया
वो थे पहलू में और थी चाँदनी रात
वो मुझ से हुए हम-कलाम अल्लाह अल्लाह
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
वो हुस्न को जल्वा-गर करेंगे
वफ़ा की आख़िरी मंज़िल भी आ रही है क़रीब
उठी है जो क़दमों से वो दामन से अड़ी है
तुझ को आते ही नहीं छुपने के अंदाज़ अभी
तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे
तू ने कुछ भी न कहा हो जैसे
तिरी महफ़िल में सोज़-ए-जावेदानी ले के आया हूँ
सुकून-ए-क़ल्ब ओ शकेब-ए-नज़र की बात करो
शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार
सायों से लिपट रहे थे साए
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
रस्म-ए-मेहर-ओ-वफ़ा की बात करें