दिलों में गब्र-ओ-मुसलमाँ ज़रा ख़याल करें
ख़ुदा के वास्ते क़िस्से का इंफ़िसाल करें
Wasi Shah
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Gulzar
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कलेजा काँपता है देख कर इस सर्द-मेहरी को
क्या बनाया है बुतों ने मुझ को
मेरे अशआ'र से मज़मून-ए-रुख़-ए-यार खुला
बच कर कहाँ मैं उन की नज़र से निकल गया
दिल में इक दर्द उठा आँखों में आँसू भर आए
पाया है इस क़दर सुख़न-ए-सख़्त ने रिवाज
आशिक़ हैं हम को हर्फ़-ए-मोहब्बत से काम है
देखिए आज वो तशरीफ़ कहाँ फ़रमाएँ
उठा दी क़ैद-ए-मज़हब दिल से हम ने
हैं वो सूफ़ी जो कभी नाला-ए-नाक़ूस सुना
ऐ सनम सब हैं तिरे हाथों से नालाँ आज-कल
ख़ाक में मुझ को मिला के वो सनम कहता है