दूर से देखने का 'यास' गुनहगार हूँ मैं
दिल को हद से सिवा धड़कने न दिया
दिल लगाने की जगह आलम-ए-ईजाद नहीं
ख़ुदाओं की ख़ुदाई हो चुकी बस
पहुँची यहाँ भी शैख़ ओ बरहमन की कश्मकश
फ़र्दा को दूर ही से हमारा सलाम है
मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शर्माना नहीं आता
वल्लाह ये ज़िंदगी भी है क़ाबिल-ए-दीद
ठोकरें खिलवाईं क्या-क्या पा-ए-बे-ज़ंजीर ने
बादल को लगी खिलते बरसते कुछ देर
जैसे दोज़ख़ की हवा खा के अभी आया हो
बैठा हूँ पाँव तोड़ के तदबीर देखना