'अमीर' अब हिचकियाँ आने लगी हैं
कहीं मैं याद फ़रमाया गया हूँ
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जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
ज़ाहिद उमीद-ए-रहमत-ए-हक़ और हज्व-ए-मय
मैं रो के आह करूँगा जहाँ रहे न रहे
मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी से
आहों से सोज़-ए-इश्क़ मिटाया न जाएगा
तुम को आता है प्यार पर ग़ुस्सा
लाए कहाँ से उस रुख़-ए-रौशन की आब-ओ-ताब
देख ले बुलबुल ओ परवाना की बेताबी को
फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया
हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
वादा-ए-वस्ल और वो कुछ बात है
हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे