ये ताएरों की क़तारें किधर को जाती हैं
न कोई दाम बिछा है कहीं न दाना है
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
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हवा के पास बस इक ताज़ियाना होता है
बिछड़ के तुझ से किसी दूसरे पे मरना है
कहते हैं लोग शहर तो ये भी ख़ुदा का है
हम अहल-ए-ख़ौफ़
एक नज़्म
फूलों की ताज़गी ही नहीं देखने की चीज़
परिंद पेड़ से परवाज़ करते जाते हैं
चमन वही कि जहाँ पर लबों के फूल खिलें
ख़ुशी भी अब सरापा ग़म लगे है
सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं
ये लोग ख़्वाब बहुत कर्बला के देखते हैं
मेरी रुस्वाई के अस्बाब हैं मेरे अंदर