Ghazals of Farhat Ehsas (page 5)

Ghazals of Farhat Ehsas (page 5)
नामफ़रहत एहसास
अंग्रेज़ी नामFarhat Ehsas
जन्म की तारीख1952
जन्म स्थानDelhi

देखो अभी लहू की इक धार चल रही है

दबा पड़ा है कहीं दश्त में ख़ज़ाना मिरा

चराग़-ए-शहर से शम-ए-दिल-ए-सहरा जलाना

चाकरी में रह के इस दुनिया की मोहमल हो गए थे

बुझ गए सारे चराग़-ए-जिस्म-ओ-जाँ तब दिल जला

बीमार हो गया हूँ शिफा-ख़ाना चाहिए

बे-रंग बड़े शहर की हस्ती भी वहीं थी

ब-रंग-ए-सब्ज़ा उन्ही साहिलों पे जम जाएँ

बा-मा'नियों से बच के मोहमल की राह पकड़ी

बहुत ज़मीन बहुत आसमाँ मिलेंगे तुम्हें

बहुत सी आँखें लगीं हैं और एक ख़्वाब तय्यार हो रहा है

बहुत मुमकिन था हम दो जिस्म और इक जान हो जाते

बदन और रूह में झगड़ा पड़ा है

बादल इस बार जो उस शहर पे छाए हुए हैं

औरों ने उस गली से क्या क्या न कुछ ख़रीदा

औरों का सारा काम मुझे दे दिया गया

असीर-ए-ख़ाक भी हूँ ख़ाक से रिहा भी हूँ मैं

अजीब तजरबा आँखों को होने वाला था

अहल-ए-बदन को इश्क़ है बाहर की कोई चीज़

अभी नहीं कि अभी महज़ इस्तिआरा बना

अब दिल की तरफ़ दर्द की यलग़ार बहुत है

आया ज़रा सी देर रहा ग़ुल गया बदन

आख़िर उस के हुस्न की मुश्किल को हल मैं ने किया

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