ख्वाब Poetry (page 111)
जो कहते हैं किधर दीवानगी है
आबिद अख़्तर
तेरी आँखों के लिए इतनी सज़ा काफ़ी है
अभिषेक शुक्ला
शब भर इक आवाज़ बनाई सुब्ह हुई तो चीख़ पड़े
अभिषेक शुक्ला
सफ़र के बाद भी ज़ौक़-ए-सफ़र न रह जाए
अभिषेक शुक्ला
सुर्ख़ सहर से है तो बस इतना सा गिला हम लोगों का
अभिषेक शुक्ला
सफ़र के बा'द भी ज़ौक़-ए-सफ़र न रह जाए
अभिषेक शुक्ला
लहर का ख़्वाब हो के देखते हैं
अभिषेक शुक्ला
हम ऐसे सोए भी कब थे हमें जगा लाते
अभिषेक शुक्ला
दर-ए-ख़याल भी खोलें सियाह शब भी करें
अभिषेक शुक्ला
चलते हुए मुझ में कहीं ठहरा हुआ तू है
अभिषेक शुक्ला
अभी तो आप ही हाइल है रास्ता शब का
अभिषेक शुक्ला
अब इख़्तियार में मौजें न ये रवानी है
अभिषेक शुक्ला
ख़्वाब आँखों में जितने पाले थे
अभिषेक कुमार अम्बर
जिस्म के मर्तबान में क्या है
अब्दुस्समद ’तपिश’
गुमान तोड़ चुका मैं मगर नहीं कोई है
अब्दुर्राहमान वासिफ़
फ़रेब-ए-ज़ार मोहब्बत-नगर खुला हुआ है
अब्दुर्राहमान वासिफ़
अच्छा है कोई तीर-बा-नश्तर भी ले चलो
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
मैं तुझ को जागती आँखों से छू सकूँ न कभी
अब्दुल्लाह कमाल
वादा-ए-वस्ल है लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार उठा
अब्दुल्लाह कमाल
इतना यक़ीन रख कि गुमाँ बाक़ी रहे
अब्दुल्लाह कमाल
हसीन ख़्वाब न दे अब यक़ीन-ए-सादा दे
अब्दुल्लाह कमाल
अभी गुनाह का मौसम है आ शबाब में आ
अब्दुल्लाह कमाल
फिर नई हिजरत कोई दरपेश है
अब्दुल्लाह जावेद
देखते हम भी हैं कुछ ख़्वाब मगर हाए रे दिल
अब्दुल्लाह जावेद
कोई रिश्ता न हो फिर भी रिश्ते बहुत
अब्दुल्लाह जावेद
जानिब-ए-दर देखना अच्छा नहीं
अब्दुल्लाह जावेद
हम क्या कहें कि आबला-पाई से क्या मिला
अब्दुल्लाह जावेद
चाँदनी रात में हर दर्द सँवर जाता है
अब्दुल्लाह जावेद
चमका जो चाँद रात का चेहरा निखर गया
अब्दुल्लाह जावेद
अश्क ढलते नहीं देखे जाते
अब्दुल्लाह जावेद