Sad Poetry (page 11)
सरसर चली वो गर्म कि साए भी जल गए
इक़बाल मिनहास
नगर में रहते थे लेकिन घरों से दूर रहे
इक़बाल मिनहास
जब शाख़-ए-तमन्ना पे कोई फूल खिला है
इक़बाल मिनहास
उस को नग़्मों में समेटूँ तो बुका जाने है
इक़बाल मतीन
कितने ही लोग दिल तलक आ कर गुज़र गए
इक़बाल मतीन
जब वो लब-ए-नाज़ुक से कुछ इरशाद करेंगे
इक़बाल मतीन
ज़ीस्त तकरार-ए-नफ़स हो जैसे
इक़बाल माहिर
शहपारा-ए-अदब हो अगर वारदात-ए-दिल
इक़बाल माहिर
राह दोनों की वही है सामना हो जाएगा
इक़बाल माहिर
रात तारीक रास्ते ख़ामोश
इक़बाल माहिर
जुनूँ में हम रह-ए-ख़ौफ़-ओ-ख़तर से गुज़रे हैं
इक़बाल माहिर
हस्ब-ए-मामूल आए हैं शाख़ों में फूल अब के बरस
इक़बाल माहिर
बगूलों की सफ़ें किरनों के लश्कर सामने आए
इक़बाल माहिर
अज्नबिय्यत का हर इक रुख़ पे निशाँ है यारो
इक़बाल माहिर
अहल-ए-फ़न अहल-ए-अदब अहल-ए-क़लम कहते रहे
इक़बाल माहिर
सरहद-ए-जाँ तलक क़लम-रौ दिल
इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी
रोता है कोई किसी के ग़म में
इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी
चश्म-ए-ख़ाना मक़ाम-ए-दर्द का है
इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी
बख़्शे न गए एक को बख़्शा न कभी
इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी
आँखों के चराग़ वारते हैं
इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी
ध्यान आया मुझे रात की तन्हा-सफ़री का
इक़बाल कौसर
मुज़ाहिमतों के अहद-निगार
इक़बाल कौसर
सुपुर्द-ए-ग़म-ज़दगान-ए-सफ़-ए-वफ़ा हुआ मैं
इक़बाल कौसर
मैं दर पे तिरे दर-ब-दरी से निकल आया
इक़बाल कौसर
करें हिजरत तो ख़ाक-ए-शहर भी जुज़-दान में रख लें
इक़बाल कौसर
काहिश-ए-ग़म ने जिगर ख़ून किया अंदर से
इक़बाल कौसर
जो ज़ख़्म जम्अ किए आँख-भर सुनाता हूँ
इक़बाल कौसर
'इक़बाल' यूँही कब तक हम क़ैद-ए-अना काटें
इक़बाल कौसर
अगरचे मुझ को बे-तौक़-ओ-रसन-बस्ता नहीं छोड़ा
इक़बाल कौसर
अभी मिरा आफ़्ताब उफ़ुक़ की हुदूद से आश्ना नहीं है
इक़बाल कौसर