Sad Poetry (page 9)
इसी सबब से तो हम लोग पेश-ओ-पस में हैं
इक़बाल उमर
एक इक लम्हा कि एक एक सदी हो जैसे
इक़बाल उमर
दोस्तों में वाक़ई ये बहस भी अक्सर हुई
इक़बाल उमर
छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही
इक़बाल उमर
अब इलाज-ए-दिल-ए-बीमार-ए-सहर हो कि न हो
इक़बाल उमर
वो शबनम का सुकूँ हो या कि परवाने की बेताबी
इक़बाल सुहैल
आशोब-ए-इज़्तिराब में खटका जो है तो ये
इक़बाल सुहैल
ज़िंदाँ-नसीब हूँ मिरे क़ाबू में सर नहीं
इक़बाल सुहैल
ज़बानों पर नहीं अब तूर का फ़साना बरसों से
इक़बाल सुहैल
ये इत्र बे-ज़ियाँ नहीं नसीम-ए-नौ-बहार की
इक़बाल सुहैल
उफ़ क्या मज़ा मिला सितम-ए-रोज़गार में
इक़बाल सुहैल
कहाँ ताक़त ये रूसी को कहाँ हिम्मत ये जर्मन को
इक़बाल सुहैल
जो तसव्वुर से मावरा न हुआ
इक़बाल सुहैल
असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा
इक़बाल सुहैल
अंजाम-ए-वफ़ा भी देख लिया अब किस लिए सर ख़म होता है
इक़बाल सुहैल
अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया
इक़बाल सुहैल
'साजिद' तू फिर से ख़ाना-ए-दिल में तलाश कर
इक़बाल साजिद
प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर
इक़बाल साजिद
मिरे घर से ज़ियादा दूर सहरा भी नहीं लेकिन
इक़बाल साजिद
होते ही शाम जलने लगा याद का अलाव
इक़बाल साजिद
फ़िक्र-ए-मेआर-ए-सुख़न बाइस-ए-आज़ार हुई
इक़बाल साजिद
बढ़ गया है इस क़दर अब सुर्ख़-रू होने का शौक़
इक़बाल साजिद
वो मुसलसल चुप है तेरे सामने तन्हाई में
इक़बाल साजिद
वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा
इक़बाल साजिद
तुम मुझे भी काँच की पोशाक पहनाने लगे
इक़बाल साजिद
सूरज हूँ ज़िंदगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
इक़बाल साजिद
संग-दिल हूँ इस क़दर आँखें भिगो सकता नहीं
इक़बाल साजिद
साए की तरह बढ़ न कभी क़द से ज़ियादा
इक़बाल साजिद
रुख़-ए-रौशन का रौशन एक पहलू भी नहीं निकला
इक़बाल साजिद
प्यासे के पास रात समुंदर पड़ा हुआ
इक़बाल साजिद