Sharab Poetry (page 23)
जब भी नज़्म-ए-मै-कदा बदला गया
फ़ना निज़ामी कानपुरी
हुस्न का एक आह ने चेहरा निढाल कर दिया
फ़ना निज़ामी कानपुरी
हम आगही-ए-इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे
फ़ना निज़ामी कानपुरी
घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ
फ़ना निज़ामी कानपुरी
इक तिश्ना-लब ने बढ़ के जो साग़र उठा लिया
फ़ना निज़ामी कानपुरी
चेहरा-ए-सुब्ह नज़र आया रुख़-ए-शाम के बाद
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर
फ़ना निज़ामी कानपुरी
तिरा ग़म रहे सलामत यही मेरी ज़िंदगी है
फ़ना बुलंदशहरी
न दहर में न हरम में जबीं झुकी होगी
फ़ना बुलंदशहरी
मिरी लौ लगी है तुझ से ग़म-ए-ज़िंदगी मिटा दे
फ़ना बुलंदशहरी
मेरे रश्क-ए-क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया
फ़ना बुलंदशहरी
मिरे दाग़-ए-दिल वो चराग़ हैं नहीं निस्बतें जिन्हें शाम से
फ़ना बुलंदशहरी
जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गया
फ़ना बुलंदशहरी
जब तक मिरी निगाह में तेरा जमाल है
फ़ना बुलंदशहरी
जब तक मिरे होंटों पे तिरा नाम रहेगा
फ़ना बुलंदशहरी
दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया
फ़ना बुलंदशहरी
बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैं
फ़ना बुलंदशहरी
अब तसव्वुर में हरम है न सनम-ख़ाना है
फ़ना बुलंदशहरी
कोई तसव्वुर में जल्वा-गर है बहार दिल में समा रही है
फ़ैज़ी निज़ाम पुरी
काँच के शहर में पत्थर न उठाओ यारो
फ़ैज़ुल हसन
सुराही मुज़्महिल है मय का पियाला थक चुका है
फ़ैज़ ख़लीलाबादी
तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
सजाओ बज़्म ग़ज़ल गाओ जाम ताज़ा करो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मय-ख़ाना सलामत है तो हम सुर्ख़ी-ए-मय से
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ख़ैर दोज़ख़ में मय मिले न मिले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ज़िंदाँ की एक सुब्ह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ज़िंदगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ये किस दयार-ए-अदम में...
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
यास
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़