Sharab Poetry (page 40)
ख़ुदा जाने कहाँ है 'असग़र'-ए-दीवाना बरसों से
असग़र गोंडवी
जान-ए-नशात हुस्न की दुनिया कहें जिसे
असग़र गोंडवी
हुस्न को वुसअतें जो दीं इश्क़ को हौसला दिया
असग़र गोंडवी
एक ऐसी भी तजल्ली आज मय-ख़ाने में है
असग़र गोंडवी
असरार-ए-इश्क़ है दिल-ए-मुज़्तर लिए हुए
असग़र गोंडवी
अक्स किस चीज़ का आईना-ए-हैरत में नहीं
असग़र गोंडवी
आलाम-ए-रोज़गार को आसाँ बना दिया
असग़र गोंडवी
किस तरह आए तिरी बज़्म-ए-तरब में आइना
असीर लखनवी
जाने लगे हैं अब दम-ए-सर्द आसमाँ तलक
असीर लखनवी
तुम्हारी याद में दुनिया को हूँ भुलाए हुए
असर सहबाई
लुत्फ़ गुनाह में मिला और न मज़ा सवाब में
असर सहबाई
वो उन का हिजाब और नज़ाकत के नज़ारे
असर रामपुरी
वो जो नहीं हैं बज़्म में बज़्म की शान भी नहीं
असर रामपुरी
निगह-ए-शौक़ को यूँ आइना-सामानी दे
असर लखनवी
दिल इश्क़ की मय से छलक रहा है
असर लखनवी
भूले अफ़्साने वफ़ा के याद दिल्वाते हुए
असर लखनवी
अश्क-ए-गुल-रंग निसार-ए-ग़म-ए-जानाना करें
असर लखनवी
शराब बंद हो साक़ी के बस की बात नहीं
असद मुल्तानी
तमाशा है कि सब आज़ाद क़ौमें
असद मुल्तानी
ख़याल यार मुझे जब लहू रुलाने लगा
असद जाफ़री
न बज़्म अपनी न अपना साक़ी न शीशा अपना न जाम अपना
असद भोपाली
पोशीदा क्यूँ है तूर पे जल्वा दिखा के देख
असअ'द बदायुनी
हाथ से किस ने साग़र पटका मौसम की बे-कैफ़ी पर
आरज़ू लखनवी
हर टूटे हुए दिल की ढारस है तिरा वअ'दा
आरज़ू लखनवी
'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसी
आरज़ू लखनवी
वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से
आरज़ू लखनवी
पियूँ ही क्यूँ जो बुरा जानूँ और छुपा के पियूँ
आरज़ू लखनवी
नज़र उस चश्म पे है जाम लिए बैठा हूँ
आरज़ू लखनवी
मुझ को दिल क़िस्मत ने उस को हुस्न-ए-ग़ारत-गर दिया
आरज़ू लखनवी
कहीं सर पटकते दीवाने कहीं पर झुलसते परवाने
आरज़ू लखनवी