अब्र में छुप गया है आधा चाँद
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
इक नई नज़्म कह रहा हूँ मैं
मैं ने माना तिरी मोहब्बत में
यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
आज मुद्दत के ब'अद होंटों पर
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
ना-मुरादी के ब'अद बे-तलबी
हाए ये तेरे हिज्र का आलम
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
यूँ ही बदला हुआ सा इक अंदाज़