यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
याद-ए-माज़ी में यूँ ख़याल तिरा
तितली कोई बे-तरह भटक कर
एक कम-सिन हसीन लड़की का
अपने आईना-ए-तमन्ना में
दूर वादी में ये नदी 'अख़्तर'
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
कर चुकी है मिरी मोहब्बत क्या
हुस्न का इत्र जिस्म का संदल
यूँ उस के हसीन आरिज़ों पर