यूँ दिल की फ़ज़ा में खेलते हैं
तेरे माथे पे ये नुमूद-ए-शफ़क़
यूँ नदी में ग़ुरूब के हंगाम
इक ज़रा रसमसा के सोते में
आ कि इन बद-गुमानियों की क़सम
दोस्त! क्या हुस्न के मुक़ाबिल में
सर्फ़-ए-तस्कीं है दस्त-ए-नाज़ तिरा
इस हसीं जाम में हैं ग़ल्तीदा
किस को मालूम था कि अहद-ए-वफ़ा
चंद लम्हों को तेरे आने से
एक कम-सिन हसीन लड़की का
अब्र में छुप गया है आधा चाँद