सर में तकमील का था इक सौदा
पास रह कर जुदाई की तुझ से
उस के और अपने दरमियान में अब
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
चारा-गर भी जो यूँ गुज़र जाएँ
शर्म दहशत झिझक परेशानी
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
चाँद की पिघली हुई चाँदी में
साल-हा-साल और इक लम्हा