कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
मेरी अक़्ल-ओ-होश की सब हालतें
जो रानाई निगाहों के लिए फ़िरदौस-ए-जल्वा है
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
शर्म दहशत झिझक परेशानी
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था
ये तो बढ़ती ही चली जाती है मीआद-ए-सितम
मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
हर तंज़ किया जाए हर इक तअना दिया जाए
उस के और अपने दरमियान में अब
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
पास रह कर जुदाई की तुझ से