मिरी जब भी नज़र पड़ती है तुझ पर
क्या बताऊँ कि सह रहा हूँ मैं
इश्क़ समझे थे जिस को वो शायद
थी जो वो इक तमसील-ए-माज़ी आख़िरी मंज़र उस का ये था
कौन सूद-ओ-ज़ियाँ की दुनिया में
जो हक़ीक़त है उस हक़ीक़त से
साल-हा-साल और इक लम्हा
ये तेरे ख़त तिरी ख़ुशबू ये तेरे ख़्वाब-ओ-ख़याल
है मोहब्बत हयात की लज़्ज़त
मैं ने हर बार तुझ से मिलते वक़्त
वो कसी दिन न आ सके पर उसे
सर में तकमील का था इक सौदा