मुबहम पयाम
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
ज़ब्त-ए-गिर्या
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
ख़ुद से न उदास हूँ न मसरूर हूँ मैं
दिल रस्म के साँचे में न ढाला हम ने
बाग़ों पे छा गई है जवानी साक़ी
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल