थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
बरसात है दिल डस रहा है पानी
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
इंसान की तबाहियों से क्यूँ हिले दिल-गीर
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
जाने वाले क़मर को रोके कोई
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे