वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
फिर किसी बात का ख़याल आया
हाए ये सादगी ओ पुरकारी
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
शम्-ए-ज़र्रीं की नर्म लौ ऐ दोस्त
चेहरा-ए-आफ़ाक़ को देती है नूर
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा