शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
एक मुद्दत सितम उठाने पर
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
मुस्कुराया है यूँ तिरा चेहरा
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
रंग-अफ़्शाँ हो जिस तरह उमीद
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे
है कुछ ऐसी ही बरहमी ऐ दिल
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
फिर किसी बात का ख़याल आया