राही तरफ़-ए-आलम-ए-बाला हूँ मैं
अश्कों में नहाओ तो जिगर ठंडे हों
अख़्तर से भी आबरू में बेहतर है ये अश्क
मय-ख़ान-ए-कौसर का शराबी हूँ मैं
बालों पे ग़ुबार-ए-शेब ज़ाहिर है अब
अहबाब से उम्मीद है बे-जा मुझ को
दुनिया भी अजब सरा-ए-फ़ानी देखी
हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं है आवाज़
क्यूँ-कर दिल-ए-ग़म-ज़दा न फ़रियाद करे
अंजाम पे अपने आह-ओ-ज़ारी कर तू
फ़ुर्सत कोई साअत न ज़माने से मिली
ऐ बख़्त-ए-रसा सू-ए-नजफ़ राही कर