Coupletss of Mushafi Ghulam Hamdani (page 12)

Coupletss of Mushafi Ghulam Hamdani (page 12)
नाममुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अंग्रेज़ी नामMushafi Ghulam Hamdani
जन्म की तारीख1751
मौत की तिथि1824
जन्म स्थानAmroha

जो शैख़-ए-शहर आया हम से औबाशों की मज्लिस में

जो मुझ आतिश-नफ़्स ने मुँह लगाया उस को ऐ साक़ी

जो मिला उस ने बेवफ़ाई की

जो कि पेशानी पे लिक्खा है वही होता है

जो है सो तुम्हारा ही तरफ़-दार है साहिब

जितना कि ये दुनिया में हमें ख़्वार रखे है

जीते अगर न हम तो क्यूँ ज़िल्लतें उठाते

जिस्म-ए-ख़ाकी को बनाया लाग़री ने ऐन-रूह

जिस्म ने रूह-ए-रवाँ से ये कहा तुर्बत में

जिस वक़्त कि कोठे पर वो माह-ए-तमाम आवे

जिस कू मैं हो गुज़ार-ए-परी-तलअतान-हिन्द

जिस को कहते हैं अरसा-ए-हस्ती

जिस हुस्न के जल्वे हैं आरिफ़ की निगाहों में

जिस बयाबान-ए-ख़तरनाक में अपना है गुज़र

जी में है इतने बोसे लीजे कि आज

जी में आती है करूँ उन को मैं इक दिन सीधा

जी जिस को चाहता था उसी से मिला दिया

झुर्रियाँ क्यूँ न पड़ें उम्र-ए-फ़ुज़ूँ में मुँह पर

जंगल में टेसू फूला और बाग़ में शगूफ़ा

जमुना में कल नहा कर जब उस ने बाल बाँधे

जम्अ रखते नहीं, नहीं मालूम

जागा है रात प्यारे तू किस के घर जो तेरी

जाड़ों में है ये रंग कि अपने लिहाफ़ के

जब तक कि तिरी गालियाँ खाने के नहीं हम

जब से मअ'नी-बंदी का चर्चा हुआ ऐ 'मुसहफ़ी'

जब मैं ने कहा आँखें छुपा खोल दिया मुँह

जब इस में ख़ूँ रहा न तो ये दिल का आबला

जब दिल का जहाज़ अपना तबाही में पड़े है

जब चाहे तू जला दे मिरे मुश्त-ए-उस्तुख़्वाँ

जानते आप से जुदा तुझ को

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