Coupletss of Mushafi Ghulam Hamdani (page 10)

Coupletss of Mushafi Ghulam Hamdani (page 10)
नाममुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अंग्रेज़ी नामMushafi Ghulam Hamdani
जन्म की तारीख1751
मौत की तिथि1824
जन्म स्थानAmroha

क्या बैठना क्या उठना क्या बोलना क्या हँसना

क्या अदा से आवे है दीवाना कर के सैर-ए-बाग़

कुश्ता-ए-रंग-ए-हिना हूँ मैं ओजब इस का क्या

कुफ़्र फैला है यहाँ तक कि ज़माने में कोई

कुफ़्र और दीं में तग़ायर नहीं गर देखिए ख़ूब

कुछ टूटे फटे सीने को साथ अपने सफ़र में

कुछ तो मिलता है मज़ा सा शब-ए-तन्हाई में

कुछ शेर-ओ-शायरी से नहीं मुझ को फ़ाएदा

कुछ इस क़दर नहीं सफ़र-ए-हस्ती-ओ-अदम

कूचा-ए-ज़ुल्फ़ में फिरता हूँ भटकता कब का

कूचा-ए-यार में रहने से नहीं और हुसूल

कोई घर बैठे क्या जाने अज़िय्यत राह चलने की

किसी के हाथ तो लगता नहीं है इक अय्यार

किसी के अक़्द में रहती नहीं है लूली दहर

किसी जंगल के गुल-बूटे से जी मेरा बहल जाता

किश्वर-ए-दिल अब मकान-ए-दर्द-ओ-दाग़-ओ-यास है

किस ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम के आई है मुक़ाबिल

किस वक़्त जुदा मुझ से वो कम्बख़्त हुई थी

किस की ख़ातिर को मुक़द्दम रख्खूँ मैं हैरान हूँ

किस के मजरूह गुलिस्ताँ में हैं मदफ़ूँ जो हनूज़

ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ

ख़्वाहिश-ए-वस्ल तो रखता हूँ बहुत जी में वले

ख़्वाहिश-ए-वस्ल का मज़मूँ जो किसी सत्र में था

ख़्वाब-ए-आराम में सोता था वो गुल क़हर हुआ

ख़्वाब का दरवाज़ा कुइ मसदूद कर देता है रोज़

ख़ुर्शीद-रू हमारा जिस से मिलेगा हर सुब्ह

खुलता है क़ुफ़्ल-ए-ऐश मिरा इस से 'मुसहफ़ी'

ख़ुदा रक्खे ज़बाँ हम ने सुनी है 'मीर' ओ 'मिर्ज़ा' की

ख़ुदा हम तो शब-ए-फ़िराक़ से मजबूर हो गए

ख़ूब-रूयों की मोहब्बत से करें क्यूँ तौबा

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