Coupletss of Mushafi Ghulam Hamdani (page 8)

Coupletss of Mushafi Ghulam Hamdani (page 8)
नाममुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अंग्रेज़ी नामMushafi Ghulam Hamdani
जन्म की तारीख1751
मौत की तिथि1824
जन्म स्थानAmroha

मक़्तल-ए-यार में टुक ले तो चलो ऐ यारो

मक़्सूद है आँखों से तिरा देखना प्यारे

मंज़िल-ए-मर्ग के आ पहुँचे हैं नज़दीक अब तो

मंसूर ने न ज़ुल्फ़ के कूचे की राह ली

मजनूँ कहानी अपनी सुनावे अगर मुझे

मज्लिस में उस की अब तो दरबार सा लगे है

मैं ने क्या और निगह से तिरे रुख़ को देखा

मैं ने किस चश्म के अफ़्साने को आग़ाज़ किया

मैं ने कहा था उस से अहवाल-ए-गिरिया अपना

मैं ज़ुल्फ़ मुँह में ली तो कहा मार खाएगा

मैं वो गर्दन-ज़दनी हूँ कि तमाशे को मिरे

मैं वो दोज़ख़ हूँ कि आतिश पर मिरी

मैं उन मुसाफ़िरों में हूँ इस चश्म-ए-तर के हाथ

मैं तुझ को याद करता हूँ इलाही

मैं तो समझूँगा जो समझाते हो मुझ को हर घड़ी

मैं तो जाता हूँ तरफ़ काबे के पर काफ़िर ये पाँव

मैं तेरे डर से न देखा उधर बहुत शब-ए-वस्ल

मैं तरह डालूँ अगर सोच कर कहीं घर की

मैं सवा शेर के कुछ और समझता ही नहीं

मैं निगाह-ए-पाक से देखे था तिरे हुस्न-ए-पाक को इस पे भी

मैं क्यूँकर न रख्खूँ अज़ीज़ अपने दिल को

मैं क्या कहूँ उस नग़मा-ए-मस्तूर की तस्वीर

मैं क्या जानूँ क़लक़ क्या चीज़ है पर इतना जानूँ हूँ

मैं किस क़तार में हूँ जहाँ मुझ से सैकड़ों

मैं किंगरा-ए-अर्श से पर मार के गुज़रा

मैं कर के चला बातें और उस शोख़ ने वोहीं

मैं जो कुछ हूँ सो हूँ क्या काम है इन बातों से

मैं जिन को बात करना ऐ 'मुसहफ़ी' सिखाया

मैं अजब ये रस्म देखी मुझे रोज़-ए-ईद-ए-क़ुर्बां

माइल-ए-गिर्या मैं याँ तक हूँ कि आज़ा पे मिरे

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