अब मुजरिमान-ए-इश्क़ से बाक़ी हूँ एक मैं
ऐ मौत रहने दे मुझे इबरत के वास्ते
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पीरी में 'रियाज़' अब भी जवानी के मज़े हैं
रहमत से 'रियाज़' उस की थे साथ फ़रिश्ते दो
मर गया हूँ पे तअ'ल्लुक़ है ये मय-ख़ाने से
इस हज में वो बुत भी साथ होगा
मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद
हाथ रक्खा मैं ने सोते में कहाँ
ऐसी ही इंतिज़ार में लज़्ज़त अगर न हो
अच्छी पी ली ख़राब पी ली
नज्द में क्या क़ैस का है उर्स आज
अज़ाँ का काम चल जाए जो नाक़ूस-ए-बरहमन से
ये सर-ब-मोहर बोतलें हैं जो शराब की
आफ़त हमारी जान को है बे-क़रार दिल