सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम (page 3)
नाम | सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम |
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अंग्रेज़ी नाम | Syed Yusuf Ali Khan Nazim |
चाहूँ कि हाल-ए-वहशत-ए-दिल कुछ रक़म करूँ
बोसा-ए-आरिज़ मुझे देते हुए डरता है क्यूँ
भला क्या ता'ना दूँ ज़ुहहाद को ज़ुहद-ए-रियाई का
बे दिए ले उड़ा कबूतर ख़त
बरसों ढूँडा किए हम दैर-ओ-हरम में लेकिन
बंद महरम के वो खुलवातें हैं हम से बेशतर
अफ़्साना-ए-मजनूँ से नहीं कम मिरा क़िस्सा
आ गया ध्यान में मज़मूँ तिरी यकताई का
वो जब आप से अपना पर्दा करें
वही गुल है गुलिस्ताँ में वही है शम्अ' महफ़िल में
थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात
तेरे दर से मैं उठा लेकिन न मेरा दिल उठा
रोने की ये शिद्दत है कि घबरा गईं आँखें
क़ाज़ी के मुँह पे मारी है बोतल शराब की
मोहताज नहीं क़ाफ़िला आवाज़-ए-दरा का
मिल जाएँ अज़दहाम में हम ही ये हम से दूर
मैं ने कहा कि दा'वा-ए-उलफ़त मगर ग़लत
ले के अपनी ज़ुल्फ़ को वो प्यारे प्यारे हाथ में
कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं
कहाँ है तू कहाँ है और मैं हूँ
कभी ख़ूँ होती हुए और कभी जलते देखा
जब कहो क्यूँ हो ख़फ़ा क्या बाइ'स
जाँ-फ़िशानी का वाँ हिसाब अबस
इस तवक़्क़ो' पे कि देखूँ कभी आते जाते
हम ने सौ सौ तरह बनाई बात
हम उन की नज़र में समाने लगे
हम को हवस-ए-जल्वा-गाह-ए-तूर नहीं है
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स
दिल में उतरी है निगह रह गईं बाहर पलकें
बे-दिए ले उड़ा कबूतर ख़त