अख़्तर अंसारी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अख़्तर अंसारी (page 5)

अख़्तर अंसारी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अख़्तर अंसारी (page 5)
नामअख़्तर अंसारी
अंग्रेज़ी नामAkhtar Ansari
जन्म की तारीख1909
मौत की तिथि1988

अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं

ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ

आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया

ये सनम रिवायत-ओ-नक़्ल के हुबल-ओ-मनात से कम नहीं

ये हसीन फ़ितरत के हुस्न का अनीला-पन

तिरा आसमाँ नावकों का ख़ज़ीना हयात-आफ़रीना हयात-आफ़रीना

तब्अ इशरत-पसंद रखता हूँ

सुनने वाले फ़साना तेरा है

सुना के अपने ऐश-ए-ताम की रूदाद के टुकड़े

सीना ख़ूँ से भरा हुआ मेरा

शोले भड़काओ देखते क्या हो

शोले भड़काओ देखते क्या हो

सरशार हूँ छलकते हुए जाम की क़सम

समझता हूँ मैं सब कुछ सिर्फ़ समझाना नहीं आता

साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं

सदा कुछ ऐसी मिरे गोश-ए-दिल में आती है

क़सम इन आँखों की जिन से लहू टपकता है

पुर-कैफ़ ज़ियाएँ होती हैं पुर-नूर उजाले होते हैं

फूल सूँघे जाने क्या याद आ गया

मुतरिब-ए-दिल की वो तानें क्या हुईं

मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में

मोहब्बत है अज़िय्यत है हुजूम-ए-यास-ओ-हसरत है

मेरे रुख़ से सुकूँ टपकता है

मैं दिल को चीर के रख दूँ ये एक सूरत है

लुत्फ़ ले ले के पिए हैं क़दह-ए-ग़म क्या क्या

क्या ख़बर थी इक बला-ए-ना-गहानी आएगी

कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं

किसी से लड़ाएँ नज़र और झेलें मोहब्बत के ग़म इतनी फ़ुर्सत कहाँ

ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम

ख़िज़ाँ में आग लगाओ बहार के दिन हैं

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