अज़हर इनायती कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अज़हर इनायती (page 2)

अज़हर इनायती कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अज़हर इनायती (page 2)
नामअज़हर इनायती
अंग्रेज़ी नामAzhar Inayati
जन्म की तारीख1946

हर एक रात को महताब देखने के लिए

हम-अस्रों में ये छेड़ चली आई है 'अज़हर'

ग़ज़ल का शेर तो होता है बस किसी के लिए

घर से किस तरह मैं निकलूँ कि ये मद्धम सा चराग़

चौराहों का तो हुस्न बढ़ा शहर के मगर

अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसास

अजब जुनून है ये इंतिक़ाम का जज़्बा

अब मिरे ब'अद कोई सर भी नहीं होगा तुलू'अ

आज शहरों में हैं जितने ख़तरे

आज भी शाम-ए-ग़म! उदास न हो

ये क्या कि रंग हाथों से अपने छुड़ाएँ हम

वो ताज़ा-दम हैं नए शो'बदे दिखाते हुए

वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना

वो मुझ से मेरा तआ'रुफ़ कराने आया था

वो मेरा यार था मुझ को न ये ख़याल आया

उस को आदाब बिछड़ने के सिखाता हुआ मैं

उजाला दश्त-ए-जुनूँ में बढ़ाना पड़ता है

उदास उदास तबीअ'त जो थी बहलने लगी

तिरे तक़ाज़ों पे चेहरे बदल रहा हूँ मैं

तमाम शख़्सियत उस की हसीं नज़र आई

शुरू-ए-इश्क़ में लोगों ने इतनी शिद्दत की

रंगतें मासूम चेहरों की बुझा दी जाएँगी

क़यामत आएगी माना ये हादिसा होगा

नज़र की ज़द में सर कोई नहीं है

मयस्सर हो जो लम्हा देखने को

मैं समुंदर था मुझे चैन से रहने न दिया

क्या क्या नवाह-ए-चश्म की रानाइयाँ गईं

कुछ आरज़ी उजाले बचाए हुए हैं लोग

किताबें जब कोई पढ़ता नहीं था

ख़त उस के अपने हाथ का आता नहीं कोई

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