Coupletss of Faiz Ahmad Faiz (page 2)
नाम | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Faiz Ahmad Faiz |
जन्म की तारीख | 1911 |
मौत की तिथि | 1984 |
जन्म स्थान | Lahore |
ख़ैर दोज़ख़ में मय मिले न मिले
कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत
करो कज जबीं पे सर-ए-कफ़न मिरे क़ातिलों को गुमाँ न हो
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी
जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई
जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए
जवाँ-मर्दी उसी रिफ़अत पे पहुँची
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी
जानता है कि वो न आएँगे
इन में लहू जला हो हमारा कि जान ओ दिल
हम से कहते हैं चमन वाले ग़रीबान-ए-चमन
हम शैख़ न लीडर न मुसाहिब न सहाफ़ी
हम सहल-तलब कौन से फ़रहाद थे लेकिन
हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे
हम ऐसे सादा-दिलों की नियाज़-मंदी से
हम अहल-ए-क़फ़स तन्हा भी नहीं हर रोज़ नसीम-ए-सुब्ह-ए-वतन
हाँ नुक्ता-वरो लाओ लब-ओ-दिल की गवाही
हदीस-ए-यार के उनवाँ निखरने लगते हैं
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
ग़म-ए-जहाँ हो रुख़-ए-यार हो कि दस्त-ए-अदू
गर्मी-ए-शौक़-ए-नज़ारा का असर तो देखो
गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा
फ़रेब-ए-आरज़ू की सहल-अँगारी नहीं जाती
इक तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल है सो वो उन को मुबारक
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन
दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के