Hope Poetry (page 104)
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
बशीर बद्र
अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ
बशीर बद्र
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
बशीर बद्र
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
बशीर बद्र
ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है
बशीर बद्र
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बशीर बद्र
वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो
बशीर बद्र
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या
बशीर बद्र
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
बशीर बद्र
सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे
बशीर बद्र
पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है
बशीर बद्र
पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में
बशीर बद्र
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बशीर बद्र
मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए
बशीर बद्र
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे
बशीर बद्र
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
बशीर बद्र
ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में
बशीर बद्र
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई
बशीर बद्र
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो
बशीर बद्र
जब तक निगार-ए-दाश्त का सीना दुखा न था
बशीर बद्र
हमारे पास तो आओ बड़ा अंधेरा है
बशीर बद्र
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
बशीर बद्र
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
बशीर बद्र
दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में
बशीर बद्र
चमक रही है परों में उड़ान की ख़ुशबू
बशीर बद्र
अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझे
बशीर बद्र
हम तिरे बंदे हमारा तू ख़ुदा-वंद-ए-करीम
बशीर-उन-निसा बेगम बर्क़
मुब्तला-ए-इ'ताब हैं हम लोग
बशीरुद्दीन राज़
जल्वों का उन के दिल को तलब-गार कर दिया
बशीरुद्दीन राज़
हुई मुद्दतें ऐ दिल-ए-हज़ीं न पयाम है न सलाम है
बशीरुद्दीन राज़