Hope Poetry (page 103)
लड़ ही जाए किसी निगार से आँख
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
है दुनिया में ज़बाँ मेरी अगर बंद
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
चराग़ उस ने बुझा भी दिया जला भी दिया
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
यूँ खुल गया है राज़-ए-शिकस्त-ए-तलब कभी
बशीर ज़ैदी असीर
किसे ख़बर है मैं दिल से कि जाँ से गुज़रूँगा
बशीर सैफ़ी
ख़ुद अपना ए'तिबार गँवाता रहा हूँ मैं
बशीर सैफ़ी
इस बहर-ए-बे-सदा में कुछ और नीचे जाएँ
बशीर सैफ़ी
हब्स के दिनों में भी घर से कब निकलते हैं
बशीर सैफ़ी
रुख़ तुम्हारा हो जिधर हम भी उधर हो जाएँगे
बशीर महताब
किस मस्ती में अब रहता हूँ
बशीर महताब
इक लम्हा भी गुज़ारूँ भला क्यूँ किसी के साथ
बशीर महताब
चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है
बशीर महताब
चले भी आओ कि ये डूबता हुआ सूरज
बशीर फ़ारूक़ी
आगही कर्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास
बशीर फ़ारूक़ी
मिरे बदन में छुपी आग को हवा देगा
बशीर फ़ारूक़ी
लोगो हम छान चुके जा के समुंदर सारे
बशीर फ़ारूक़ी
अब के जुनूँ में लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं
बशीर फ़ारूक़ी
मिरी नमाज़ मिरी बंदगी मिरा ईमाँ
बशीर फ़ारूक़
वो सितम-परवर ब-चश्म अश्क-बार आ ही गया
बशीर फ़ारूक़
तख़लीक़-ए-काएनात दिगर कर सके तो कर
बशीर फ़ारूक़
वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
बशीर बद्र
उस की आँखों को ग़ौर से देखो
बशीर बद्र
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
बशीर बद्र
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
बशीर बद्र
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बशीर बद्र
मेरा शैतान मर गया शायद
बशीर बद्र
मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी
बशीर बद्र
किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी
बशीर बद्र
कमरे वीराँ आँगन ख़ाली फिर ये कैसी आवाज़ें
बशीर बद्र
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
बशीर बद्र