Hope Poetry (page 105)
दिल जो उम्मीद-वार होता है
बशीरुद्दीन राज़
मिस्ल-ए-नमरूद हर इक शख़्स ख़ुदाई माँगे
बशीर मुंज़िर
क़र्या क़र्या ख़ाक उड़ाई कूचा-गर्द फ़क़ीर हुए
बशीर अहमद बशीर
कैसी कैसी थीं उन्ही गलियों में ज़ेबा सूरतें
बशीर अहमद बशीर
जी नहीं लगता किताबों में किताबें क्या करें
बशीर अहमद बशीर
इक बे-सबात अक्स बना बे-निशाँ गया
बशीर अहमद बशीर
दूर तक चारों तरफ़ मेरे सिवा कोई न था
बशीर अहमद बशीर
वक़्त के कटहरे में
बशर नवाज़
तो ऐसा क्यूँ नहीं करते
बशर नवाज़
मुझे कहना है
बशर नवाज़
मुझे जीना नहीं आता
बशर नवाज़
ये हुस्न है झरनों में न है बाद-ए-चमन में
बशर नवाज़
रोज़ कहाँ से कोई नया-पन अपने आप में लाएँगे
बशर नवाज़
कोई सनम तो हो कोई अपना ख़ुदा तो हो
बशर नवाज़
जब कभी होंगे तो हम माइल-ए-ग़म ही होंगे
बशर नवाज़
बाज़ार-ए-ज़िंदगी में जमे कैसे अपना रंग
बशर नवाज़
ब-हर-उनवाँ मोहब्बत को बहार-ए-ज़िंदगी कहिए
बशर नवाज़
आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी
बशर नवाज़
देख कर तूल-ए-शब-ए-हिज्र दुआ करता हूँ
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
वहशत में भी रुख़ जानिब-ए-सहरा न करेंगे
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
जब अयाँ सुब्ह को वो नूर-ए-मुजस्सम हो जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
देखी जो ज़ुल्फ़-ए-यार तबीअत सँभल गई
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
हिन्द के जाँ-बाज़ सिपाही
बर्क़ देहलवी
दिल की दीवार गिर गई शायद
बाक़ी सिद्दीक़ी
वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही
बाक़ी सिद्दीक़ी