इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश
जब गू-ए-ज़मीं ने उस पे डाला साया
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
दर-अस्ल कहाँ है इख़्तिलाफ़-ए-अहवाल
हवा और सूरज का मुक़ाबला
जो साहिब-ए-मक्रमत थे और दानिश-मंद
आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे
इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते