दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
साहिल, शबनम, नसीम, मैदान-ए-तुयूर
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
मफ़्लूज हर इस्तिलाह-ईमाँ कर दे
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
ऐ ज़ाहिद-ए-हक़-शनास वाले आलिम-ए-दीं
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा