दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
मेरे कमरे की छत पे है उस बुत का मकान
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
बरसात है दिल डस रहा है पानी
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
पुर-हौल-शिकम अरीज़ सीने वालो
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
लिल्लाह हमारे ग़ुर्फ़ा-ए-दीं को न छोप
ममनूअ शजर से लुत्फ़-ए-पैहम लेने
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह