एक मुद्दत सितम उठाने पर
तेरी फ़ितरत सुकूँ-पसंदी है
जब कभी आलम-ए-तसव्वुर में
ज़िंदगी इस तरह भटकती है
पर-फ़िशाँ है थका थका सा ख़याल
ये चमेली की अध-खिली कलियाँ
हाल-ए-दिल तुम से आज कहता हूँ
ना-मुरादी के तुंद तूफ़ाँ में
दिल में न जाने कितनी उमीदें लिए हुए
शौक़-ओ-अरमाँ की बे-क़रारी को
अपनी फ़ितरत पे नाज़ है मुझ को
वो अँधेरे जो मुंजमिद से थे